वो कल का कॉलेज का दिन मेरे लिए बहुत ही महत्वपूर्ण रहा एक ऐसे शिक्षक को पाकर मेरे अँधेरे मन के कोने में वो रौशनी दिखाई देने लगी थी जिसकी मुझे तलाश थी लेकिन तलाश के साथ साथ मन में काफ़ी सारे प्रश्न कौधने लगें थे उस रात मैं चैन से सो भी नहीं पाया था कुछ सवाल मेरे दिमाग में घर कर रहें थे जो मेरे धर्म की नीव के इतिहास से जुड़े हुए थे.. आखिर हमारे हिन्द के पूर्वजों का इतिहास क्या था... उन्होंने भारत को इतना महान कैसे बनाया क्या देव देवी इस पृथ्वी पर सही में थे... थे तो वो कैसे थे उस समय का हिन्दू कैसा था क्या हम उन्ही की संतान हैं... उन्होंने ग्रहो और नक्षत्रों की गड़ना कैसे की आदि आदि के प्रश्नों में मेरा मन उलझता रहा और सुबह कब हुई और कब मुझे नींद नेअपने आगोश घेर लिया मुझे पता ही नहीं चला था...शायद ये मेरे मन और सोच के प्रति नया परिवर्तन था जिसे हर सामान्य इंसान इसे समझने से कोसो दूर था... ये बात सही हैं समय के साथ साथ इंसान कितना बदलता गया क्या ये बदलाब बुरा था या सही ये तो मुझे पता नहीं था पर इतना ज़रूर पता था कि हम ज़माने के इस बदलाव में काफी कुछ पीछे छोड़ कर भूलते जा रहें हैं... मैं उसनीदा सा बिस्तर पर पड़ा पड़ा सोच रहा था तभी पापा जी की गुस्से भरी पुकार ने मेरी नींद को कोसों दूर भगा दिया था मैं फ़ौरन उठ कर अपनी स्टडी टेबल पर किताब खोल कर बैठ गया था.. पापा जी ने मेरे रूम में आते ही जब मुझे देखा तो उनका गुस्सा शायद शांत हो गया था..और मेरे प्रति उनका लेहज़ा भी बदल गया था
पापा - 9 बजने बाले हैं आज क्या तुम्हे कॉलेज नहीं जाना हैं..?
मैं - जाना हैं पापा..
पापा- वो सायकिल का पैडल कैसे टूटा..?
मैं- पापा वो टूटा नहीं हैं उसकी चुडिया खराब हो गई हैं..
पापा- तो कल शाम को उसे तुम ठीक तो करा सकते थे ना...?
मैं चुप ही रहा था
पापा- अच्छा ठीक हैं अब जल्दी से उठो कॉलेज का टाइम हो रहा हैं आज मेरी सायकिल लेकर चले जाना नास्ता तैयार हैं आज मैं ऑफिस थोड़ा लेट जाऊंगा..
मैं- (उठते हुए) जी पापा..! और अपना बिस्तर ठीक करने को हुआ ही था
पापा - तुम जाओ तैयार हो जाओ बिस्तर मैं ठीक किये देता हूं...
और मैं चुपचाप अपने रूम से बाहर निकल आया था... और जल्द ही तैयार होकर कॉलेज के लिए जाने को हुआ तभी पापा ने मेरे शर्ट की कालर ठीक करते हुए कहा..
पापा- सम्हल के और एक तरफ से जाना... लंच रख दिया हैं पूरा फिनिश करना समझे..और कॉलेज खत्म होते ही सीधे घर आ जाना इधर उधर कही आवारा गर्दी में मत लग जाना..
मैं - जी पापा...! और मैं उनसे इज़ाजत लेकर कॉलेज की तरफ कूच कर गया था... पापा जी की ये बात आज की नहीं थी उनके ये शब्द मेरे लिए रोज के थे. उन्हें पता हैं कि मैं उनकी हर बात को मानता हूं लेकिन वो अपने इस फर्ज़ से कभी नहीं चूकते थे..
मैं अपनी धुन में सयकिल के पेडल मारे जा रहा रहा आज मुझे प्रोफेसर जी से कुछ सवालों को पूछना था मैं हर बार अपने दिमाग़ में सवालों को पूछने की भूमिका बनाए जा रहा था लेकिन प्रश्न ये था कि सबाल कौन सा पूछा जाए क्या वो मेरे सवालों का उत्तर देंगे..? क्या उनसे ये सवाल करना ठीक रहेगा..?कही मैं जल्द बाजी में तो नहीं हूं...लेकिन जो भी हो पर एक बार पूछ लेने में क्या बुराई हैं..मैं सबालों से मुठभेड़ करता हुआ कॉलेज आ पहुंचा था मेरे सहपाठी भी मुझे कॉलेज के गेट पर ही मिल गए थे.. हम लोग आपस में बतियाते हुए अपनी क्लास की तरफ हो लिए..
क्यों कल के दिन की क्लास कैसी रही तुम लोगों की..? मैन अपने सहपाथियों से पूछा था..
सभी ने एक साथ जवाब दिया.. शानदार यार जुगल सर तो कमाल के हैं..
रितु- सर ने तो कल बातों बातों में ही हमें हमारे सब्जेक्ट का पहला लेसन ही पढ़ा दिया..
ए... s.. s..! ऐसा क्या... पंकज ने आश्चर्य से कहा था इतना ही नहीं मैंने भी अपनी हिस्ट्री की बुक को खोल कर नहीं देखी थी..
रितु- हां यार कल जब शाम को मैंने बुक खोली तो मैं तो दंग रह गयी सर ने कितने सहजता से बातों ही बातों में एक चेपटर कम्प्लीट करा दिया...
रितु के अलावा हम लोगों ने घर पर जा के बुक तो क्या बेग ही नहीं खोला था... लेकिन रितु की बात सही थी शायद स्कूल टीचरों से अलग प्रोफेसर होते हैं ऐसा मन में एक प्रश्न और कौध गया था.. तभी सर का क्लास रूम में आना हुआ हम सब कल की ही तरह उनके अभिवादन में खडे हो गए थे उन्होंने अपना सामान अपनी टेबल पर रखतें हुए कहा..
सर- कैसे हैं आप सब
उनके इस सवाल पर हम सबने एक ही सुर में जवाब दिया था..ठीक हैं सर...!
सर- अच्छा आज हम लोगों का दूसरा दिन हैं... कल कॉलेज से जाकर आप लोगों ने हिस्ट्री के बारे में काफ़ी कुछ सोचा होगा ऐसा मेरा मानना हैं आप लोगों के मन में काफी सारे सवाल भी होंगे जहां तक मुझे ऐसा लगता हैं...
सर की इन बातों से मेरा दिमाग़ हिल गया था... ये प्रोफेसर हैं या अंतरयामी..
सर- हां तो महेंद्र आज आपकी बारी हैं..
मैं चौक सा गया था...! क... क...कैसी बारी सर ..?
सर- यही की आज तुम्हारे मन में जो भी उथल पुथल हों रही हैं उसके बारे में पूछ सकते हों शायद मैं बारी बारी से आप लोगों के सवालों के उत्तर देंकर आप लोगों की जिज्ञासा को शांत कर सकू..
सही में सर ने तो आज मन की बात भाप ली...मैंने अपने अंदर हिम्मत जुटाई और पहला प्रश्न सर की तरफ दागा था..
सर मैं आप से एक नहीं दो प्रश्न पूछूंगा...?
सर- आप दो नहीं दस प्रश्न पूछ सकते हों.. लेकिन ये लोग भी तो हैं..?
पंकज- सर क्या ऐसा नहीं हों सकता कि आने वाले 6 दिन हम प्रश्न काल के लिए ही रखें..
मनोज- क्या ये विधानसभा चल रही हैं..?
सब हंस पड़ते हैं
सर - ओके चलिए हम ऐसा ही करते हैं लेकिन शर्त एक ये हैं कि सबाल इतिहास से ही जुडा होना चाहिए
सभी- ओके सर...!
सर- तो चलो महेंद्र पूछो अपना सवाल पूछो..?
सर मेरा पहला सवाल ये हैं कि आपने कैसे जाना कि मेरे मन में कई सवाल हैं..?
सर- आपकी सूरत देख कर..
हम सब चुप से हों गए.. सर हम लोगों की शकले ताड़े जा रहें थे
सर - चुप क्यों हो गये... भई दूसरा सवाल करों...!
मैं थोड़ा सोचते हुए... सर हमारे भारत का इतिहास क्या हैं आखिर इसकी शुरुआत कैसे हुई..?
सर- हूं.....अच्छा प्रश्न हैं... आप लोगों में से कितनों को हमारे भारत के इतिहास के बारे में जानकारी हैं यानि मेरा मतलब ये हैं कि आप लोग हमारे भारत के बारे में कितना जानते हों..?
मैं तो निरुत्तर तो था ही साथ ही मेरे बाकी के सहपाठी भी निरुत्तर ही थे..
सर- देखा जाए तो आप लोग ही नहीं आज कल के अधिकतर स्टूडेंट्सों के यही हालत हैं... मैं दोष आप लोगों को नहीं दें रहा हूं मैं दोषी आज की शिक्षा नीति को मानता हूं आजकल के बच्चों को ज्ञान नहीं हैं जितना उसके दिमाग में भर दिया जाता है बस वो वहीं तक ही सिमित रहता हैं पिछली क्लास में क्या पढ़ा उन्हें कुछ पता नहीं रहता इस बात के लिए सबसे बड़ा दोष आज की शिक्षा का चलन हैं...जिस में प्रेक्टिकल से ज्यादा थ्योरीकल हैं.. जबकि थ्योरी को समझाई जाती हैं लेकिन यहां तो अब उल्टा ही हैं आज कल स्टूडेंट उसे रट लेते हैं लेकिन नॉलेज के नाम पर डब्बा...शायद आप लोगों को मेरी ये बात चुभ रही होंगी
अनुभा- बिलकुल नहीं सर... यही सच हैं.. जब से परसेंटज की दौड़ शुरू हुई हैं तब से सब गुड़ गोबर हों रहा हैं..अब हर साल तो सिलेबर्स चेंज हों जाता हैं ऐसा लगता जो पिछला पढ़ा वो इस साल के किसी भी काम का नहीं हैं सब बदल जाता हैं कोई लिंक ही नहीं रहता..
सर- अभी कुछ ही महिनों पहले की बात हैं एक फाइनल इयर के स्टूडेंट को मैंने 15 अगस्त पर एक पेज का एस्से लिखने को कहा था आपलोग यकीन नहीं मानेंगे वो स्टूडेंट एक लाइन भी नहीं लिख सका.. ये हाल उसका ही नहीं था उस ईयर के हर एक स्टूडेंट की यही हालत थे बस उन्हें इतना पता हैं कि 15 अगस्त को हमारा देश आज़ाद हुआ था.. खैर... हां तो हम कहा थे भारत के इतिहास पर थे है ना महेंद्र..?
जी सर..?
सर - तो हमारे भारत का इतिहास कई हजार वर्ष पुराना माना जाता है.. लगभग 65,000 साल पहले होमो सेपियन्स जिन्हे हम आधुनिक मनुष्य भी कह सकते हैं जो अफ्रीका से भारतीय उपमहाद्वीप में पहुँचे थे...जहां वो पहले विकसित हुए थे..इतिहास के हिसाब से मानव 30,000 साल पहले से ही दक्षिण एशिया में रहता आ रहा हैं जिसके 6500 ईशा पूर्व के बाद से खेती, जानवरों के पालन पोषण, स्थायी निवास के सबूत मेहरगढ़ और बलूचिस्तान के अन्य स्थान में देखने को मिले हैं... ये धीरे-धीरे सिंधु घाटी की सभ्यता में विकसित हुए जिसके सबूत 1900 से 2500 ईशा पूर्व के दौरान दक्षिण एशिया में पहली शहरी संस्कृति पाई गयी जो अब पाकिस्तान और पश्चिमी भारत में हैं सिन्धु घाटी सभ्यता, जिसका आरम्भ काल लगभग 3300 ईसापूर्व से माना जाता है जो प्राचीन मिस्र और सुमेर सभ्यता के साथ विश्व की प्राचीनतम सभ्यता में से एक हैं... दुर्भाग्य पूर्ण से इस सभ्यता की लिपि अब तक पढ़ी नहीं जा सकी है.. सिन्धु घाटी सभ्यता वर्तमान पाकिस्तान और उससे सटे भारतीय प्रदेशों में फैली थी... पुरातत्त्व प्रमाणों के आधार पर 1900 ईसापूर्व के आसपास इस सभ्यता का अचानक से पतन हो गया..
हम सब बेहद मग्न होकर इतिहास की गाथा को सुन रहें थे... इतना कहते कहते सर थोड़ा शांत हुए और वो हम लोगों के चेहरे प्रश्न वाचक दृष्टि से देखने लगे थे...
सर- एनी क्वेश्चन...?
नो सर...! मेरे सह छात्रों ने एक सुर में जवाब दिया था... लेकिन ये क्या हज़ारों साल का इतिहास चंद शब्दों में तो नहीं समा सकता था...तभी मैंने तुरंत ही पूछा था बस सर इतना ही...?
सर मेरी बात सुन कर मुस्कुरा दिए... और उन्होंने आगे कहना ज़ारी रखा
सर -19वीं शताब्दी के बाद आर्यों का एक वर्ग भारतीय उप महाद्वीप की सीमाओं पर 2000 ईसा पूर्व के आसपास पहुंचा था जो पंजाब में बस गया था और वहीं से हमारे ऋग्वेद की ऋचाओं की रचना की गई... जिसे हम चार वेदो के नाम से जानते हैं आप लोगों को भी शायद पता ही होंगे वो चार वेद कौन कौन से हैं...? आप लोगों में से कौन बतलाएगा..
हम सब चुप थे और एक दूसरे की शकलें देख रहें थे..
सर - पंकज आप बताओं..
पंकज- सर.. वो तो पता नहीं सर बस इतना पता हैं कि चार वेद होते हैं..
सर- ये तो सबको पता हैं कि चार वेद हैं आप लोगों ने कभी जानने की कोशिश की आखिर वेद हैं क्या..?
रितु- सर मुझे याद हैं 8th क्लास में बतलाया था कि चार वेद हैं बस..!
सर - यही कारण हैं.. हमारे देश के बच्चों को भारतीय संस्कृति और इतिहास के बारे में ना बता कर बाबर, अकबर, तैमूर ताज़महल, क़ुतुबमीनार, टीपूसुल्तान के बारे में ज्यादा बतलाया गया हैं जिस देश की नीव सनातन से जुडी हुई हैं जिस धर्म को को हम फॉलो करते हैं उसके बारे में कुछ नहीं बतलाया जाता हैं.... खैर बैठो आपलोग..अब आपलोग ध्यान से सुनो...वेद हमारे भारत के प्राचीन ज्ञान-विज्ञान का मूल स्रोत हैं... जिनकी संख्या चार है.. पहला ऋगवेद, दूसरा सामवेद, तीसरा यजुर्वेद और चौथा अथर्ववेद हैं.. अब ये हैं क्या...? और ये किस पर आधारित हैं...? पहला तो ये ऋगवेद जो सनातन धर्म का आरम्भिक स्रोत है....इसमें 10 मण्डल, 1017 सूक्त हैं वर्तमान में 10,600 मन्त्र हैं जिन मन्त्रों में देवताओं की स्तुति की गयी है...दूसरा आता सामवेद, सामवेद से तात्पर्य है कि वह ग्रन्थ जिसके मन्त्र गाये जाते हैं मतलब ये इन्हे संगीतमय में गाया जाता हैं जिन्हे यज्ञ, अनुष्ठान और हवन के समय में गाने का विधान हैं... इसका नाम सामवेद इसलिये पड़ा है कि इसमें गायन-पद्धति के निश्चित मन्त्र ही हैं... अब तीसरा वेद हैं यजुर्वेद, यजुर्वेद हिन्दू धर्म का एक महत्त्वपूर्ण श्रुति धर्मग्रन्थ है इसमें यज्ञ की असल प्रक्रिया के लिये गद्य और पद्य मन्त्र दिए गए हैं जो 663 की संख्या में हैं..अब चौथा वेद अथर्ववेद का अथर्ववेद की भाषा और स्वरूप के आधार पर माना जाता हैं कि इसकी रचना सबसे बाद में हुई अथर्ववेद में शान्ति-पुष्टि तथा अभिचारिक दोनों तरह के अनुष्ठन वर्णित हैं... इसलिए हमारी सभ्यता वैदिक कहलाई.. प्राचीन भारत के इतिहास में वैदिक सभ्यता सबसे प्रारम्भिक सभ्यता है जिसका सम्बन्ध आर्यों के आगमन से है.. आर्यों की भाषा संस्कृत थी और धर्म "वैदिक धर्म" या "सनातन धर्म" के नाम से प्रसिद्ध था, बाद में विदेशी आक्रान्ताओं द्वारा इस धर्म का नाम हिन्दू पड़ा..
जय- सर अभी आपने सनातन का ज़िक्र किया था इसका क्या मतलब हैं
सर - 'सनातन' का अर्थ है - शाश्वत या 'हमेशा बना रहने वाला', जिसका न आदि है न अन्त हैं वही सनातन हैं..हमारा सनातन धर्म मूलतः भारतीय धर्म है...जो किसी समय पूरे बृहत्तर भारत यानि भारतीय उपमहाद्वीप तक व्याप्त रहा है...
जय- मतलब सर हिन्दू ही भारत हैं..
सर- बिलकुल ये दोनों ही एक दूसरे के पर्याय हैं दोनों की एक दूसरे से पहचान हैं..
रितु- सर हमारा ये उपमहाद्वीप तब कहां कहां तक फैला था..?
सर- हमारा भारतीय उपमहाद्वीप उस काल में बेहद विशाल रहा हैं...जिसमें भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल, भूटान, मालदीव,श्रीलंका और अफगानिस्तान शामिल है..
हम सब चुप थे.. मुझे अंदर ही अंदर गर्व महसूस हों रहा था कि मैं भारत की माटी में जन्मा हूं.. तभी बेल बज उठी थी..
जय - उफ्फ्फ...! सर क्या आप हमारी एकस्ट्रा क्लास नहीं लें सकते..
सर- फिर मुस्कुरा उठे थे.. मैं देख रहा हूं आपलोगों का इंट्रेस्ट काफी बढ़ता जा रहा हैं.. इसका ये मतलब तो नहीं कि भारत का अतीत एक ही दिन में सुना दिया जाए.. आज जो मैंने आपलोगों को बताया उस बारे में अपने एफर्ट से भी जानने की कोशिस करों... कल हम फिर इसी चर्चा को जारी रखेंगे... क्यों महेंद्र..?
जी बिलकुल सर...
हम सब खडे हों गए थे.. और सर को धन्यवाद दिया.. सर भी हमारे जबाब पर कृतज्ञता ज़ाहिर करते हुए चले गए थे..हम सब भी उठ कर अपने अपने घर को चले आए थे रास्ते भर मन में बात उठती रही कि जिस देशऔर धर्म की नीव वेद के आधर पर हों उस देश और धर्म में जन्म लेना कितना सोभाग्य साली हैं..लेकिन मन में एक कचोट ये भी थी कि जब हमारे पूर्वज इतने ज्ञान से समृद्ध थे तो आज हम इतने पिछड़े हुए क्यों हैं..?
क्रमशः-3
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