सम्राट अशोक का वैराग्य (लघु नाटिका )
जैसा कि आप सभी सम्राट अशोक के बारे में जानते ही हैं.. उनके जीवन काल में काफ़ी कुछ घटित हुआ था.. सम्राट अशोक एक महान योद्धा थे उनका साम्राज्य काफ़ी विशाल था.. फिर उनके जीवन में ऐसा क्या हुआ कि उन्हें वेराग्य को अपनाना पड़ा इस लघु नटिका सम्राट के उस पहलू को दर्शाया गया हैं साथ ही मेरा उद्देश्य ये भी हैं कि कहानी को नाटक के रूप में कैसे लिखी जाती हैं जिससे नए लेखक जो नाटक आदि में रूचि रखते हैं उन्हें ये पता चल सके... तो चलिए शुरू करते हैं लघु नाटिका.....
दृश्य - 1
आर्टिस्ट- सम्राट अशोक
स्टेज पर अंधेरा हैं.... स्टेज के बेक ड्राप पर अशोक चिन्ह की आकृति एक मध्यम धुन के साथ उभारती हैं.... और उसके साथ एक मेल वॉइस चलती हैं...
V/O- विश्व के इतिहास में सम्राट अशोक का नाम हमेशा से ही शीर्ष पर लिया जाता हैं... जो भारत की भूमि के साम्राज्य का सच्चा समर्थक था... जो अपने साम्राज्य के विस्तार और शान्ति के लिए हमेशा ततपर्य रहता था... सम्राट अशोक ने अपने जीवन काल में अनेको युद्ध लड़े...
नेपथ्य का स्वर और संगीत का विश्राम होता हैं... स्टेज पर घुप्प अंधेरा हो जाता हैं....
नेपथ्य में करुणा, रुदन और चीख के स्वर तेज होने लगते हैं और साथ ही साथ स्टेज पर स्पॉट लाइट का उजाला धीरे धीरे प्रकाशित होता हैं जिस उजाले में ज़मीन पर सम्राट अशोक युद्ध के पश्चात बैठा हैं..
चीख पुकार के स्वर उसे विचलित और उसके ह्रदय को द्रवित कर रहें हैं.. कलिंग युद्ध की विभीषिका के दृश्य उसके शरीर पर हावी हो रहें हैं...
कुछ छणो के बाद सब शांत हो जाता हैं... सम्राट सम्हालता हैं और प्रतिज्ञा करता हैं..
सम्राट - मैं सम्राट अशोक प्रतिज्ञा करता हूं आज के बाद अब कभी भी ये तलबार नहीं उठाऊंगा (तलबार एक और फेकता हैं ) और ना कभी युद्ध लडूंगा...
तभी नेपथ्य में स्वर उभरता हैं
कोरस - बुद्धम शरणम् गछामी....
ये स्वर धीरे धीरे मध्यम होता हैं साथ ही साथ स्पॉट लाइट भी अंधेरे में तब्दील हो जाती हैं...
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दृश्य -2
आर्टिस्ट- सूत्र धार महिला / पुरुष / सम्राट अशोक
मंच के एक और स्पॉट लाइट में खड़ा सूत्रधार दर्शकों से मुख़ातिब होता हैं.
पुरुष सूत्रधार - इतिहास में अलग अलग मतो के अनुसार सम्राट अशोक के ह्रदय परिवर्तन के कई उल्लेख मिलते हैं..और कई मत भी हैं जो सहमति नहीं देते क्योंकि एक योद्धा के ह्रदय परिवर्तन में हजारों की करुणामयी चीख पुकार रुदन तो पहले भी हुए होंगे.. लेकिन एक कारण ये भी हो सकता हैं जो सम्राट अशोक के ह्रदय परिवर्तन का कारण बन गया हो....
पुरुष सूत्रधार के स्थान की स्पॉट लाइट बंद होती हैं
मंच के दूसरी तरफ की स्पॉट लाइट उदित होती हैं जिसमें महिला सूत्रधार दर्शकों से मुख़ातिब होती हैं
महिला सूत्रधार - ये दास्तां सम्राट अशोक और उनकी पत्नी देवी के अनोखे प्रेम बंधन की हैं
जिसमें अशोक और देवी दोनों बंधन में तो बंधे पर देवी कभी अपनी ससुराल नहीं जा पाईं. दोनों के बीच प्रेम तो था, लेकिन रास्ते अलग अलग थे. हालांकि, यह बात और है कि जीवन में अंतिम समय में अशोक ने देवी के पदचिह्नों पर चलना ही स्वीकार किया.
महिला सूत्रधार की स्पॉट लाइट लुप्त हो जाती हैं और फिर पहले सूत्रधार की स्पॉट लाइट प्रकाशित हो जाती हैं
पुरुष सूत्रधार - वह दिन राजकुमार अशोक के लिए बहुत खास था, जब उनके गुरु चाणक्य के शिष्य राधा गुप्त को राज्य का महामात्य चुना गया. इस शुभ मौके पर उनसे मिलने विदिशा से श्रेष्ठ समाज के प्रमुख देवदत्त भी आए और उन्होंने अशोक और राधागुप्त को विदिशा आने का न्यौता दिया.
पुरुष सूत्रधार के तरफ की स्पॉट लाइट बंद होती हैं और महिला सूत्रधार के तरफ की लाइट प्रकाशित होती हैं महिला सूत्रधार बोलना प्रारम्भ करती हैं
महिला सूत्रधार - अशोक का मन प्रसन्न था और उन्होंने प्रस्ताव स्वीकार कर लिया. इसके तीन दिन बाद वह अपने सेवकों और कुछ सैनिकों के साथ विदिशा जा पहुंचे. विदिशा की प्रजा ने सम्राट अशोक के स्वागत में पलक पांवड़े बिछा दिए. वहीं देवदत्त ने राजकुमार अशोक का विशेष स्वागत किया. उनके लिए विशेष तौर पर गीत-संगीत के कार्यक्रम का आयोजन किया गया था. उसी शाम कार्यक्रम से पहले जब अशोक अपने कक्ष में आराम कर रहे थे कि तभी....
महिला सूत्रधार की स्पॉट लाइट बंद हो जाती हैं और स्टेज के मध्य की रौशनी प्रकाशित होती हैं
अशोक अपने कक्ष में आराम कर रहे हैं.. तभी कुछ लड़कियों के खिलखिलाने की आवाज उन्हें सुनाई दी खिलखिलाहटों के बीच एक मीठी सी ध्वनि अशोक के कानों में पड़ती हैं आवाज सुनकर अशोक से रहा नही जाता और वे बाहर की और जाता हैं...
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दृश्य - 3
आर्टिस्ट - देवी / पांच सहेलियां / सम्राट / राधागुप्त / महिला सूत्र धार / पुरुष सूत्रधार
देवी अपनी सहेलियों संग बाग में फूल तोड़ने आई हुई हैं... देवी से जब अशोक की नजरें मिलती हैं तो दोनों ठिठक जाते हैं और देवी लज़ा कर पेड़ों के पीछे छिप जाती हैं .
सम्राट अशोक हौले हौले पेड़ों के पास जाता हैं और देखता हैं, लेकिन देवी वहां नहीं होती हैं देवी वहां से जा चुकी होती हैं....सम्राट अशोक देवी की यादों में खो जाता हैं..
स्टेज फिर से अंधेरे में डूब जाता हैं स्टेज के मध्य स्पॉट स्पॉट लाइट में महिला सूत्रधार दिखाई देती हैं
और वो जैसे ही बोलना शुरू करती हैं तभी स्टेज के दोनों तरफ स्पॉट लाइट जल जाती हैं जिसमें एक और सम्राट और एक और देवी दिखाई दें रहें हैं जो एक दूसरे की यादों में व्याकुल हैं.
महिला सूत्रधार -यह इन दोनों की पहली मुलाकात थी, लेकिन इस पहली मुलाक़ात में ही दोनों एक दूसरे को दिल दें बैठे थे...दोनों इस घटना के बाद से ही विचलित थे.....और दोनों एक दूसरे के खयालों में खोए हुए रहते थे....कब शाम हो जाती और कब सुबह दोनों को पता ही नहीं चलता था...इस बात को लेकर रधागुप्त भी काफ़ी परेशान था.
राधागुप्त- सम्राट मैं समझ नहीं पा रहा हूं... आपकी इस व्यकुलता को... पिछले कुछ दिनों से आप कुछ ज्यादा ही परेशान दिख रहें हैं...ऐसा आपका स्वभाव हमने पहले कभी नहीं देखा सम्राट..
सम्राट - राधागुप्त ये तो हम भी नहीं समझ पा रहें हैं...अब ये मन कही लगता ही नहीं...कैसे बताएं के हम क्यों ऐसे होते जा रहें हैं...
तभी दूसरे तरफ देवी के प्रांगण में देवी की चार सखीयां आती हैं
सखी एक - देवी कम से कम आज तो हमारे साथ बाहर चलो कितने दिनों से कक्ष में इस तरह बैठी रहोगी...?
सखी दो - हां सखी आज देखों ना उपवन में कितनी बहार हैं.. चलोना देवी...
देवी - कैसे कहूं... के अब मन को कुछ भाता ही नहीं मुझे अकेला ही रहने दो... तुम लोग मुझे मत सताओ... ना देवी का मन यहां हैं और नहीं तन यहां हैं...
सखियाँ आपस में बतियाने लगती हैं
तीसरी सखी - लगता हैं देवी प्रेम पाश में मोहित हो चुकी हैं...
देवी - (क्रोधित होते हुए ) मैंने कहां ना मुझे अकेला छोड़ दो... तुम लोग जाओ यहां से...
सखियाँ देवी के इस आदेश को सुनकर वहां से चली जाती हैं...
मंच पर फिर अंधेरा हो जाता हैं...
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दृश्य-4
आर्टिस्ट - सम्राट / राधा गुप्त / सन्देश वाहक
पूरे मंच पर धीरे रौशनी बढ़ती हैं...सम्राट व्याकुल खडे खिड़की के बहार के दृश्य को देख रहें हैं.. तभी सन्देश वाहक और राधागुप्त आते हैं
संदेश वाहक - सम्राट की जय हो...!
कोई उत्तर नहीं..
सन्देश वाहक सम्मान में हाथ में सन्देश लिए खड़ा हो जाता हैं राधागुप्त सम्राट के पास आते हैं..
रधागुप्त- सम्राट की जय हो..
सम्राट - कैसे आना हुआ राधागुप्त...?
राधागुप्त - सम्राट विदिशा नरेश ने आपको निमंत्रण भेजा हैं..
सम्राट खुश होते हुए मुड़ते हैं
सम्राट- किस बात के लिए...?
सन्देश वाहक पास आ कर राधागुप्त को निमंत्रण सौंपता हैं
सन्देश वाहक - सम्राट विदिशा नरेश व्यस्तता के चलते स्वयं ना आ सकें..
सम्राट - कोई बात नहीं...विदिशा नरेश से कहो हमने उनका निमंत्रण स्वीकार कर लिया हैं..
सन्देश वाहक - आज्ञा सम्राट...
सम्राट उसे प्रस्थान करने का इशारा करते हैं... सन्देश वाहक आदर पूर्वक प्रणाम करके चला जाता हैं...
सम्राट राधागुप्त से निमंत्रण लेते हैं और खोल कर पढ़ने लगते... उनके चेहरे पर प्रशान्नता के भाव उभर आते हैं राधागुप्त भी सम्राट का प्रशन्नचित चेहरा देख कर प्रशन्न हो जाता हैं...और एक उत्सव की धुन सुनाई देने लगती हैं और मंच का प्रकाश धीरे धीरे अंधेरे में तब्दील हो जाता हैं
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दृश्य -5
आर्टिस्ट - पुरुष सूत्रधार / सम्राट / राधा गुप्त /साहूकार देवी के पिता / अन्य 3-4 और साहूकार /अन्य 6-7 पुरुष और महिलाए
मंच पर अंधेरा हैं लेकिन उत्सव की ध्वनि सुनाई दें रही हैं... मंच के एक और स्पॉट लाइट प्रकाशित होती हैं जिस लाइट में पुरुष सूत्रधार दिखाई देता हैं..
पुरुष सूत्रधार -आखिरकार वो समय निकट आ ही गया था सम्राट अशोक अपने लावलशकर के साथ विदिशा के भव्य समारोह में शामिल होने के लिए पहुंचे.
मंच के दूसरी तरफ प्रकाश उभरता हैं
सम्राट के स्वागत में विदिशा का पूरा राज्य उमड़ पड़ा था... द्वार के बहार काफ़ी लोग खडे थे आगे की पंगति में कुंवारी कन्याए हाथों में थाल लिए ख़डी थी...सम्राट अशोक और राधागुप्त साथ साथ चले जा रहें थे... उनके ऊपर फूलों की बरसात हो रही थी.... और सम्राट के सम्मान में उनकी जय के नारे पूरे वातावरण में गूंज रहें थे... सम्राट धीरे धीरे क़दमों से आगे बढ़े चले जा रहें थे...तभी उनकी नजर पीछे खडे पुरषों और महिलाओ से दो झाकती हुई आंखों पर पड़ती थी....
(सम्राट अशोक और देवी दोनों एक दूसरे को देख रहें हैं)
राधागुप्त- क्या हुआ महराज...?
सम्राट- कुछ नहीं राधागुप्त...
और दोनों आगे बढ़ जाते हैं....
और इस और अंधेरा छा जाता हैं.... तभी सूत्रधार अपनी बात को आगे बढ़ता हैं.
सूत्रधार - सृष्टि और समय के इस चक्र ने सम्राट अशोक और देवी को ये दूसरा मौका दे कर मानो आगाह किया था और इस अवसर के इस मौक़े ने प्रेम की आग ने दोनों में प्रेम की ज्वाला को और भड़का दिया था ...
पुरुष सूत्र धार के तरफ की स्पॉट लाइट का प्रकाश मध्यम होते होते अंधेरे में तब्दील हो जाता हैं...
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दृश्य -6
आर्टिस्ट - महिला सूत्रधार /सम्राट / दरवार का एक कर्मचारी /
मंच के दूसरी तरफ का प्रकास महिला सूत्रधार के स्वार के साथ प्रज्वॉलित होने लगता हैं..
महिला सूत्रधार - ये आग दोनों के दिल में सुलग चुकी थी... सम्राट के कदम ना चाह कर भी स्वागत कक्ष की और मध्यम गति से जानें को मज़बूर थे... उस समय ना चाह कर भी अपनी गरिमा पर प्रेम को हावी नहीं होने देना चाहते थे... लेकिन सम्राट की आंखे उस भीड़ में छुपी आंखों को तलाशने पर मज़बूर थी...
मंच के बिचो बीच प्रकाश उत्पन्न होता हैं सम्राट विरह की आग में जल रहा हैं
सम्राट - तुम कौन हो सुंदरी... तुमने मेरे दिल को किस मोहपाश में बांध दीया... मैं क्यों नहीं तुम्हे भूल पा रहा हूं... क्या यही प्रेम होता हैं...हैं नाथ तुमने मुझे किस मोह पाश में बांध दीया इस विरह का अंत कैसे होगा... प्रभू... कैसे होगा.
तभी एक दरवार का कर्मचारी आ कर सूचना देता हैं
दरवारी - महाराज की जय हो... सम्राट आप से नगर के कई गढ़मान्य आपसे मिलने को आतुर हैं..सम्राट...
सम्राट - हूं.... ठीक हैं गढ़ मान्य जनों से कहो हम कुछ ही समय में उपस्थित होते हैं आप राधागुप्त को भी सूचित कर दे
दरवारी - क्षमा सम्राट मान्यवर राधागुप्त तो गढ़मान्य जनों के ही साथ उपस्थित हैं वो भी आपके वहां पहुंचने की प्रतीक्षा में हैं सम्राट
सम्राट - ठीक हैं आप पहुँचे...
और दरवारी वहां से चला जाता हैं...
सम्राट अपने मुकुट और तलवार को व्यवस्थित करते हैं हैं और अंगतुको से मिलने को वहां से निकल जाते हैं...
स्टेज पर अंधेरा छा जाता हैं..
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दृश्य -7
आर्टिस्ट - पुरुष सूत्रधार / महिला सूत्रधार / सम्राट /देवी / राधागुप्त / सेवक / विदिशा नरेश / 7-8 साहूकार जिसमें देवी के पिता भी शामिल हैं / महिला और पुरुष का कराउड
स्टेज के एक तरफ पुरुष सूत्रधार पर प्रकाश फैलता हैं.
पुरुष सूत्रधार - सम्राट अशोक बिना मन से गढ़ मान्य जनों से मिलने को निकल जाते हैं... वो चाहते तो मना भी कर सकते थे... लेकिन उनका ऐसा करना एक सम्राट के विरुद्ध था...लेकिन जो भी था पर वहां कुछ ऐसा होने वाला था जिससे सम्राट बिलकुल अनभिज्ञ थे..
स्टेज पर फिर से अंधेरा हो जाता हैं...और सम्राट के आगमन की घोषणा का अनुमोदन होता.
V/o- भारत के महान सासक महाराजा सम्राट अशोक पधार रहें हैं...
कोरस में जय कारो की गूंज सुनाई देने लगती हैं
वॉइस ओवर - महिला और पुरुष - सम्राट अशोक की जय, सम्राट अशोक की जय, सम्राट अशोक की जय, सम्राट अशोक की जय, और धीरे धीरे सम्राट के जय कारे शांत होने लगते हैं और पूरा मंच रौशनी में नहा जाता हैं.. सम्राट अपने सिहासन पर विराज मान हैं... सम्राट के एक तरफ विदिशा नरेश विराजमान हैं तो दूसरी तरफ राधागुप्त विराजित हैं सम्राट के दोनों बाजू मे दो सैनिक भाल लिए मुसतैद हैं... दोनों तरफ छोटे छोटे सिहासन लगे हैं जिन पर नगर सेठ और गण मान्य जन विराजित हैं एक नगर सेठ के पास सुन्दर युवती देवी भी मौजूद हैं और कुछ दूरी पर महिला पुरुष महराज को देखने को खडे हैं सम्राट और युवती दोने एक तक एक दूसरे को देख रहें हैं तभी विदिशा नरेश बोल उठते हैं
नरेश - सम्राट आपकी आज्ञा हो तो परिचय का क्रम शुरू किया जाए
तभी सम्राट इशारे से विदिशा नरेश को आज्ञा देते हैं..
नरेश - सम्राट आप हैं शक्य वंश के विदिशा नगर के साहूकार... और साथ में उनकी बड़ी पुत्री देवी
दोनों सम्राट को प्रणाम करते हैं
नरेश -आप हैं सेठ विद्यानंद यथा नाम व्यथा काम
विद्यानंद भी महराज को प्रणाम करते हैं..
विदिशा नरेश बारी बारी से सब का परिचय कराते हैं.
(नोट - यहां हम दिखाते हैं कि परिचय चल रहा हैं पर वार्तालाप का स्वर धीरे धीरे मध्यम होता जा रहा हैं जिसके साथ साथ स्टेज की रोशनी भी मध्यम होती जा रही हैं और फिर स्टेज पर अंधेरा सा छा जाता हैं )
तभी दूसरी तरफ महिला सूत्र धार की स्पॉट लाइट की रोशनी प्रकाशित होती हैं.
महिला सूत्रधार- सम्राट अशोक और देवी एकबार फिर एक दूसरे की नज़रों में खो चुके थे.. सम्राट का ध्यान सिर्फ देवी पर था और देवी की नज़रे भारत के विशाल सम्राट की आभा में जकड़ती जा रही थी...सम्राट अपने प्रायोजन की समाप्ति के बाद उज्जयनी वापस तो लौट आए, लेकिन उनका दिल अभी भी विदिशा के उन्हीं बाग बगीचों में अपनी धड़कन को ढूंढ रहा था...
स्टेज के मध्य फिर रोशनी प्रजवलित होती हैं जिसमें सम्राट बेसुध से देवी के ख्यालों में कभी बैठते हैं तो कभी टहलते हैं... कभी मायूष तो कभी मुस्कुराते हैं.. तो कभी कुछ लिखने का प्रयास करते हैं लेकिन वो अपने दिल की बात लिख ही नहीं पाते हैं... फर्श पर फेके गए कागज़ पड़े हुए हैं
राधा गुप्त दूर खडे सम्राट की इस व्यथा को कुछ-कुछ समझ रहे थे
राधा गुप्त - आखिर सम्राट के मन में ऐसा क्या चल रहा हैं...
वो फर्श पर पड़े कागज़ो को उठा कर खोल खोल कर देखते हैं लेकिन कागज़ सारे कोरे हैं..तब वो सम्राट के निकट आते हैं...
राधा - सम्राट... सम्राट...मैं आपकी मनोदशा को समझ नहीं पा रहा हूं.. आखिर ऐसा कौन सा दवंद हैं जो विश्व विजेता को परेशान कर रहा हैं..
सम्राट - यही तो हम भी नहीं समझ पा रहें हैं राधा गुप्त.. हम कैसे अपनी व्यथा की अभिव्यक्ति करें... हमें खुद कुछ समझ नहीं आ रहा... काश के तुम समझ पाते... और हम तुम्हे समझा पाते...
तभी सेवक आता हैं..
सेवक - महराज की जय हो..
सम्राट और राधा गुप्त सेवक को देखते हैं..
सम्राट - कैसे आना हुआ...?
सेवक - सम्राट विदिशा राज्य से सुमंगला आप से भेट करना चाहती हैं.
सम्राट राधा गुप्त को देखते हुए - सुमंगला....?
इस पर राधा गुप्त निरुत्तारता व्यक्त करते हैं
राधा - उनसे कहो...
सम्राट राधा को बीच में ही टोकते हुए
सम्राट - उन्हें आदर पूर्वक हमारे पास ले आओ..
सेवक - जी महराज... (और वो वहां से चला जाता हैं )
राधा - आज कल विदिशा से संदेशे बहुत आ रहें हैं..
सम्राट - हमें लगता हैं हमारी इस व्यथा के सवालों का जवाब मिल गया राधा गुप्त...!
राधा गुप्त को कुछ समझ नहीं आता हैं..
तभी कक्ष में सुमंगला का प्रवेश होता हैं
सुमंगला - सम्राट की जय हो..
सम्राट - आपका स्वागत हैं देवी... आपके यहां आने का क्या प्रयोजन हैं.
सुमंगला राधा गुप्त की तरफ देखती हैं
सम्राट -आप निःसंकोच कहें सुमंगला..
सुमंगला सम्राट के चेहरे और दशा को देख कर मुस्कुराती हैं..
राधा गुप्त सुमंगला की इस हरकत पर क्रोधित सा होता हैं.
सुमंगला - महराज क्षमा..! मैं आपकी इस बेचैनी को भली भान्ति समझ रही हूं..आप जिनके ख्यालों में खोए हुए हो, दर असल वह भी आप की तरह बेचैन और परेशान हैं..
सम्राट- (खुश होते हुए ) उन्होंने क्या सन्देशा भेजा हैं हमारे लिए..?
सुमंगला - बस यही उनकी व्यथा आप तक बताने आपके पास आई थी.
सम्राट अशोक ने बिना देर किए अपने हाथ से एक अंगूठी निकालकर सुमंगला को दी...
सम्राट- ये हमारी और से देवी के लिए प्रणय निवेदन है....अब बस मुझे सिर्फ और सिर्फ उनके उत्तर का इंतजार है... आप जल्द से जल्द उन्हें हमारा ये निवेदन पहुंचा दे..
सुमंगला - अवश्य महराज... अब मुझे आज्ञा दे महराज....
सम्राट-अवश्य..!
और सुमंगला वहां से सम्राट का प्रणय निवेदन लेकर प्रस्थान करती हैं...
अशोक की खुशी का कोई ठिकाना न रहा.
इस दृश्य को देख राधागुप्त खुश होते हैं
राधा- महराज आप सम्राट हैं आपको तो स्वयं विदिशा जा कर देवी से मिल कर बात करनी चाहिए...
सम्राट अशोक राधा गुप्त की इस बात से और खुश हो जाते हैं और राधा गुप्त के सीने से लग जाते हैं
और स्टेज पर फिर अंधेरा छा जाता हैं
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दृश्य -8
आर्टिस्ट - पुरुष सूत्रधार / सम्राट / देवी
मंच की दूसरी तरफ स्पॉट लाइट का प्रकाश उत्पन्न होता हैं..
पुरुष सूत्रधार - ये एक ऐसे कटीले वृक्ष भरे रेगिस्तान में फूल खिलने के समान था...जहां आज तक ये सम्राट किसी की चीख और चितकार से नहीं पिघला था... आज एक सम्राट देवी के प्रेम में इतना मज़बूर हो चुका था... के वो ना चाह कर भी अपने आपको रोक नहीं पा रहा था.. आखिर कार सम्राट ने राधागुप्त के साथ देवी का सन्देश आने के पहले ही विदिशा के लिए प्रस्थान किया...सम्राट विना किसी को सूचना दिए विदिशा पहुंच चुके थे यहां तक के देवी के पिता देवदत्त को भी इस बात की खबर नहीं लगी थी....
स्टेज के मध्य प्रकाश उत्पन्न होता हैं... सम्राट साधारण वस्त्रो में देवी के साथ प्रणय मुद्रा में आमने सामने बैठे हैं..अशोक अपने हाथों में देवी का हाथ लिए निहार रहें हैं...देवी ने अशोक के द्वारा भेजी मुद्रीका अंगुली में पहन रखी हैं...
देवी- मैं आप से कुछ कहना चाहती हूं...
अशोक - कहो देवी आप क्या कहना चाहती हैं..?
देवी- मैं एक शाक्यवंशी कन्या हूं और बौध धर्म की अनुयायी. लेकिन आप युद्ध करते हैं.... और मैं अहिंसा की पुजारिन हूं...।आप राज्य पर शासन करते हैं.....और मेरा विश्वास आम लोगों के ह्दय में जगह बनाने में है....मैं शांत हूं और आप चंचल हैं... हम दोनों ही दो किनारों की तरह एक दूसरे से बिल्कुल विपरीत हैं....
अशोक- देवी हमारे विवाह के बाद आप हमारी पत्नी बनोगी और राज्य की महारानी. लोगों के दिलों में तुम्हारे लिए प्रेम और आदर होगा.
देवी मुस्कुराई
देवी - मैं केवल आप की पत्नी बनकर रहूं यही मेरी संतुष्टि हैं..... लोग मुझे महारानी समझकर आदर दें, मेरी ऐसी कोई आशा नहीं है....
अशोक - मैं जानता हूं, तुम्हारा चिंतन भगवान बौद्ध के प्रति अनुरक्त है. लेकिन हम भी तुम्हें वचन देते हैं कि कभी भी तुम्हें तुम्हारे मार्ग से नहीं हटाएंगे और ना ही हम कभी तुम्हारे चिंतन में दखल नहीं करेंगे, बल्कि तुम्हारे चिंतन से खुद को भी एकाकार कर लेंगे. यदि तुम महारानी बनकर शासन नहीं करना चाहती तो हम तुम पर आजीवन कोई दवाब नहीं बनाएंगे.
इतना सुनते ही देवी अशोक से आलिंगन वध हो जाती हैं और उनकी आंखों से इस समर्पित प्रेम के लिए अश्रु धारा टपकने लगती हैं....
और स्टेज पर फिर अंधेरा छा जाता हैं...
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दृश्य-9
आर्टिस्ट - महिला सूत्रधार / पुरुष सूत्रधार / देवी / सम्राट
स्टेज के दूसरी तरफ सूत्र धार पर प्रकाश उत्पन्न होता हैं..
महिला सूत्रधार - अशोक और देवी ने एक-दूसरे को स्वीकार कर लिया था. अगली सुबह अशोक ने देवदत्त से उनकी पुत्री का हाथ मांगा. ये सुनकर पिता की आंखों में आंसू आ गए और उन्होंने सहर्ष इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया.
(स्टेज के मध्य सम्राट अशोक देवी और देवी के पिता देवदत्त के साथ दृश्य पूर्ण कर सकते हैं )
महिला सूत्रधार -अशोक और देवी के विवाह होने की सूचना उज्जयनी पहुंची और पूरे विदिशा में आग की तरह फेल गई... वही उज्जयनी को फूलों और दीपों से सजा दिया गया.तमाम गण्यमान्य लोगों के बीच देवी और अशोक विवाह बंधन में बंध गए.
( इस पर हम बेक ग्राउंड में हम मध्यम मध्य शादी की शहनाई के स्वर को प्ले करेंगे वही स्टेज के मध्य देवी और अशोक के जयमाला का दृश्य प्ले करवाएंगे)
महिला सूत्र धार - आमतौर पर बेटियां मायके से विदा होकर अपनी ससुराल जाती हैं, लेकिन देवी की विदाई नहीं हुई. विवाह के बाद आजीवन वह अपने पिता के घर रहीं. अशोक कुछ समय तक देवी के साथ ही रहे...
पुरुष सूत्रधार के तरफ का प्रकाश प्रजवलित होता हैं..
पुरुष सूत्रधार- लेकिन उज्जयनी में बिंदुसार का स्वास्थ्य ज्यादा खराब होने के कारण अशोक को उज्जयनी आना पड़ा...
स्टेज के मध्य प्रकाश उत्पन्न होता हैं अशोक देवी से विदा लेते हैं
अशोक- हमें उज्जयनी जाना ही होगा देवी... इस समय वहां की जनता को हमारी बहुत जरूरत हैं..
देवी- ठीक हैं नाथ...!
अशोक- हमें पता हैं देवी.. तुम वेमन से हमें विदा कर रही हो... लेकिन हम तुम्हे दिए हुए हर वचन का पालन करेंगे महादेव की सौगंध देवी...
और अशोक देवी का माथा चूम कर उज्जयनी के लिए प्रस्थान करते हैं...
महिला सूत्र धार - अशोक देवी से विदा लेकर उज्जयनी लौट आए. राज्य और शासन की जिम्मेदारियों के बीच उन्होंने देवी को सदैव सम्मान दिया. अशोक देवी से मिलने विदिशा आया करते थे...बिंदुसार की मृत्यु के बाद अशोक ने उज्जयनी का सिहासन सम्हाला...समय का चक्र घूमता रहा देखते ही देखते देवी एक पुत्र और एक पुत्री की माता बन चुकी थी... दोनों बच्चे अपनी मां की छांव में पले, इसलिए उनमें हिंसा का कोई गुण नहीं था. उनमें बौद्ध के उपदेशों का असर साफ देखा जा सकता था.
पुरुष सूत्रधार- सम्राट अशोक ने अपने शासन काल के दौरान कई विवाह किए.. लेकिन जो प्रेम उनके मन में जो देवी के लिए था वह प्रेम कभी किसी और पत्नियों के लिए नहीं रहा....
और फिर स्टेज पर अंधेरा छा जाता हैं
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दृश्य- 10
आर्टिस्ट - सम्राट / राधागुप्त / देवी / बुद्ध / महिला सूत्रधार / पुरुष सूत्रधार
(दृश्य नम्बर एक की सिक्वेन्स )
स्टेज के मध्य सम्राट मौन मुद्रा में बैठे हैं मन में प्रतिज्ञा के स्वर गूंज रहें हैं
सम्राट - मैं सम्राट अशोक प्रतिज्ञा करता हूं आज के बाद अब कभी भी ये तलबार नहीं उठाऊंगा (तलबार एक और फेकता हैं ) और ना कभी युद्ध लडूंगा...
तभी राधागुप्त का प्रवेश होता हैं..
राधा गुप्त - महराज द्रोहियो की सजा के दिन की घड़ी आ चुकी हैं सम्राट...
सम्राट जमीन से उठ कर खडे होते हैं और राधा गुप्त के निकट जाते हैं...
सम्राट- उन तमाम बंदियों को राज्य की सीमा से बाहर ले जा कर छोड़ दीया जाए..
राधा - लेकिन सम्राट...?
सम्राट- आप से जो कहा गया हैं वैसा ही करों... ये आदेश हैं हमारा राधागुप्त...
राधागुप्त - तो क्या सम्राट...?
और सम्राट अपनी तलवार उठा कर कक्ष से बाहर निकल जाते हैं
राधागुप्त के चेहरे पर प्रशान्नता दिखाई देने लगती हैं...
यहां अंधेरा हो जाता हैं और सूत्रधार की तरफ प्रकाश उत्पन्न होता हैं सूत्रधार अपनी बात को आगे बढ़ाती हैं
महिला सूत्रधार- शायद देवी के ही प्रेम के कारण कलिंग के युद्ध में लाखों लोगों को अपनी आंखों के सामने मरते देखने के बाद अशोक का ह्दय परिवर्तन हुआ था और जिसके चलते सम्राट ने बौद्ध धर्म स्वीकार करते हुए अहिंसा का मार्ग अपना लिया.
सूत्रधार के ऊपर से प्रकाश विलुप्त होता हैं...
स्टेज के मध्य प्रकाश तीव्र उदित होता हैं बेकग्राउंड में धीरे धीरे स्वर सुनाई देता हैं
" हे देव देवी, बदल दिया तुने अशोक को
हे बुद्ध...! जय हो तेरी, तेरी छाव पा कर
भूल गया अशोक ही अशोक को....!"
एक ऊंचे से आसान पर बुद्ध ध्यान मुद्रा में विराजित हैं उन्ही के समक्ष अशोक और देवी बौद्धिष्ट वस्त्र में खडे हैं देवी हाथ जोड़े हैं वही अशोक अपने दोनों हांथो में समर्पण भाव से तलवार लिए हैं दोनों दो कदम बुद्ध के पास आते हैं और घुटनों के बल बैठते हैं अशोक बुद्ध के चरणों में अपनी तलवार समर्पित कर हाथ जोड़ लेते हैं बुद्ध आशीर्वाद में अपना हाथ उठा देते हैं...
बैक ग्राउंड का स्वर बदलता हैं...
बुद्धम शरणम् गछामी
और फिर मंच का प्रकाश अंधेरे में बदल जाता हैं
अशोक का स्वर - मेरे राज्य में लोग परस्पर मेल जोल से रहें.... एक दूसरे के धर्म का आदर करें.... सभी सम्प्र्दायों में धर्म के सार की वृद्धि हो....!
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पटाक्षेप -
समाप्त
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