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इश्क़ में एक और मौत

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सारांश इश्क़ का परिणाम किसी के लिए सुखद होता हैं तो किसी के लिए दुःखद होता तो कोई सिर्फ राधा की तरह इश्क़ करता हैं... इस कहानी की शुरुआत एक यंग लडके सें होती हैं जो जवानी के दौर में अपने सपने साकार करने मुंबई की फ़िल्म इंडस्ट्री में जाता हैं काफ़ी स्ट्रेगल के बाद उसे फ़िल्म इंडस्ट्री की नामचीन हीरोइन के प्रोडक्शन हॉउस में असोसिएट डाइरेक्टर की नौकरी मिल जाती हैं और फिर इश्क़ की कहानी की शुरुआत होती हैं इस कहानी में कैसे होता हैं इश्क़ का इज़हार और क्यों होती हैं तकरार... अंत में लडके को हीरोइन की चिता क्यों जलानी पड़ती हैं कैसे इश्क़ की मौत होती हैं इन्ही सब बातों को जानने के लिए पढ़िए शब्द.In पर इश्क़ में एक और मौत...! में.. 🅰️🅰️🅰️🅰️🅰️🅰️🅰️🅰️🅰️🅰️ # इश्क़ में एक और मौत मैने मेकअप रूम के दरवाजे को नॉक किया था, कि तभी अंदर से लीना मेम की आवाज़ आई.... कौन हैं....? मेम मैं सुमित.... आपको सीन समझाने आया हूं मेम.... ! ओह सुमित अंदर आ जाओ डोर खुला हैं... जी मेम.... इतना कहते ही मै दरवाजे को धकेलता हुआ अंदर दाखिल हो गया था... रूम तक पहुंचने के लिए एक 5×3 की गैलरी थी जिसके आगे चल

आधार की जंग (व्यंग)

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आधार की जंग ज़िन्दगी के संग जब से देश की सरकार ने ये घोषणा की के अब आधार हीं सब कुछ होगा...उस आधार पर हर नागरिक का ग्यारह डिजिट का एक नम्बर होगा.. व्यक्ति की वायोमेट्रिक डिटेल होंगी जैसे दोनों हांथो की अंगुलीयों के फिंगर प्रिंट होंगे, अंखो की बनावट का रिकॉर्ड होगा आदि आदि... जो हर सरकारी और गैर सरकारी कामों में आधार हीं काम आएगा.. लोगों को आकर्षित करने के लिए.. कई विज्ञापन और स्लोगनों का प्रसारण किया गया.. जो आम जन मानस के कानों में गूंजते गूंजते जुबां से गुन गुनाने लगें...जैसे  "आधार के बिना ज़िन्दगी उधार हैं आधार के बिना सब बेकार हैं" तो ज़नाब हमने अपने जीवन के अब तक के सफर में बहुत सारी जंगो के एतिहासिक पन्ने पढ़े भी और देखें भी.. लेकिन कुछ जंग ऐसी भी हैं जो आदमी खुद लड़ता हैं.. जिसका कोई इतिहास नहीं होता.. ऐसे ही एक दिलचस्प ऐतिहासिक जंग की आज मैं चर्चा कर रहा हूं... जिस जंग को मेरे भारत का हर दूसरा और तीसरा आदमी लड़ रहा हैं... अब बात चाहें रोज़गार की हों या महंगाई की हों जंग तो जंग हैं... इसी जंग में एक जंग और हैं वो हैं आधार की जंग... देश के हर नागरिक के अधिकतर मुद्

इश्क़ दा वार-1992

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पार्ट-1 वो मोहब्बत की चिंगारी 90 के दशक से सुलगना शुरू हों चुकी थी... मौसम वसंती हो कर अपने शवाब की और बढ़ रहा था.... हर यौवन के दिलों दिमांग में कही ना कही कुछ अजीब सा महसूस हो रहा था जो जवानी की देहलीज़ पर थे उनके मन का इस्थिर पन अब विचलित हो चला था.... मन में कोई राग बस यू ही बजने लगता तो स्कूल के युवाओं की गुन गुनाहट यदा कदा कानों में सुनाई देने लगी थी.... पर किस के मन में कौन था किस के लिए ये संगीत था ये तो वही जानें... पर हा एक जगह थी जहां नज़रों ही नज़रों में कोई एक दूसरे का सुकून चैन छीन रहा था... जब पहली दफा नज़रे मिली तो कुछ अजीब से सुकून का एहसास हुआ... और वो एहसास रोज़ की आदत में बदल चुका था जब दोनों मेसे कोई एक किसी को ना दिखे तो सारा दिन कोई एक मायूश रहता.. लेकिन करे भी तो क्या... कुछ भी तो बस में नहीं था... तो मन की कसक मन में ही रख कर सारी रात उन हसीन आंखो की तस्वीर को महसूस कर के गुज़र देते... अल सुबह फिर समय से पहले घर से भागने को मन मचल उठता... ना नास्ता हलक से उतरे ना दूध... बस जितनी जल्दी हो मुकाम पर पहुंचने की तड़प छट पटाने लगती थी... और एक नई उमंग और चाहत की

अब मैं भी यही चाहता हूं....!

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अब मैं भी चाहता हूँ.... कई महीनो बाद, तुम एक रोज़ मुझे कॉल करो, और वो कॉल रिसीव ही ना की जाये... तुम फिर से एक और कोशिश करो, कॉल करने की, और फिर वो भी रिसीव ना हो... फिर कुछ अरसे बाद, तुम्हे थोड़ी मिरि फ़िक्र हो, फिर तुम मुझे मेसेज करो... और उन वो मैसेजस का भी तुम्हे  कोई भी जवाब कभी ना मिले.. फिर तुम सच में  थोडे और परेशान हो जाओ... तुम सोचो मेरे बारे में, मेरी हर बात, मेरी आवाज़,मेरा चेहरा... तुम्हारे लिए मेरी फ़िक्र.. मेरे साथ बिताया हर एक-एक लम्हा.. तुम्हे याद आए... फिर तुम मुझे एक और कॉल करो, और फिर कोई रिस्पांस ना मिले, तुम फिर मुझे मैसेज करो, जिसका कोई जवाब फिर भी ना मिले.. तुम अचानक बहुत बेचैन हो जाओ, तुम्हें सब कुछ याद आता रहे, तुम लगातार मेरे बारे में सोचो... तुम्हे सब कुछ याद आये.. सब कुछ... और एक दिन जब तुम्हें नींद ना आये..  बस मेरी ही याद तुम्हे आये... फिर तुम मुझे सोशल मीडिया पर ढूँढो.. और फिर मैसेज करो.. कॉल करो.. फिर कोई जवाब ना मिले.. तब तुम फ़ोन गैलरी खोलकर.. मेरी तस्वीरें देखो... तुम्हे गुस्सा आये,  तुम्हे चिढ हो, तुम्हे रोना आये.. तुम्हें एहसास हो... कि